चौरा टॉक-सरकार का हनीमून, चंदूलाल प्रकरण से सबक, पत्रकारों की मायूसी, अर्दली और एट्रोसिटी !, तश्तरी में जीत, दारू और एक्स
सरकार का हनीमून
छत्तीसगढ़ में सत्ता परिवर्तन को सौ दिन से ज्यादा का समय पूरा हो गया है। हालांकि सौ दिन का समय बहुत कम समय होता है, इतने कम समय में तो काम-काज को समझना भी मुश्किल होता है। दूसरी तरफ नई सरकार एक तरह से तुरंत चुनावी मोड में आ गई, इसलिए चुनाव पूर्व वादों को सांय-सांय पूरा करने की भी चुनौती है। खैर, सरकार के पास अपना परफार्मेंस दिखाने के लिए पांच का भरपूर समय है, इतनी जल्दबाजी में कोई आंकलन करना सही नहीं होगा, वो कहते हैं ना कि नई सरकार भी दुल्हन की तरह होती है। शुरुवाती साल को हनीमून पीरियड माना जाता है। इस दौरान दुल्हन को भी घर-गृहस्थी की जिम्मेदारियों से मुक्त रखा जाता है, ताकि वो नए घर के काम-काज और परिवार को समझ सके, वैसे ही सूबे की नई सरकार का भी फिलहाल हनीमून पीरियड चल रहा है लिहाजा नई सरकार से ताबड़तोड़ काम या फैसलों की उम्मीद नहीं की जानी चाहिए, लेकिन हमारे चौरा के एक सदस्य ने गौर करने लायक बात कही कि नई दुल्हन का हनीमून नई सेज पर ही होना चाहिए, लेकिन यहां तो ऐसा लग रहा है कि पिछली सरकार की सेज पर नई सरकार का हनीमून चल रहा है।
चंदूलाल प्रकरण से सबक
छत्तीसगढ़ के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने लोकसभा के चुनाव में ईवीएम वर्सेस बैलेट पेपर का नया मुद्दा जोड़ दिया है। विपक्षी दल लगातार ईवीएम की विश्वसनीयता पर सवाल उठाते रहे हैं, लेकिन बघेल ने यहां लोकतांत्रिक तरीके से ईवीएम का विरोध किया है। दुर्ग लोकसभा सीट के एक कार्यक्रम में उन्होंने समझाया कि अगर किसी एक सीट से 384 उम्मीदवार खड़े होते हैं, तो नियमानुसार चुनाव बैलेट पेपर से करवाया जाएगा। अनुमान लगाया जा रहा है कि वे छत्तीसगढ़ में ऐसा प्रयोग करने पर गंभीरता से विचार कर रहे हैं, अगर ऐसा हुआ तो पूरे देश में यह पहली बार होगा। देखा जाए तो यह कोई असंभव कार्य भी नहीं है। कांग्रेस पार्टी को हर लोकसभा में मोटे तौर पर 400 उम्मीदवारों की आवश्यकता होगी। इसमें 50 लाख से एक करोड़ रुपए तक खर्चा आने का अनुमान है, लेकिन सवाल यह है कि भूपेश अपनी राजनांदगांव सीट में नहीं बल्कि दुर्ग सीट में इसे क्यों आजमाना चाहते हैं। वैसे तो कांग्रेस पूरे छत्तीसगढ़ में ऐसा प्रयोग करने में सक्षम दिखाई पड़ती है। खैर, छत्तीसगढ़ के लोकसभा चुनावों पर नजर रखने वालों को याद होगा कि पूर्व मुख्यमंत्री स्व. अजीत जोगी जब महासमुंद से चुनाव लड़ रहे थे, तो उनके खिलाफ करीब दर्जन भर चंदूलाल साहू मैदान में थे। उस समय बीजेपी ने भी चंदूलाल साहू को ही उम्मीदवार बनाया था। इस मामले की चुनाव आयोग में शिकायत भी हुई थी कि चुनाव को प्रभावित करने के लिए साजिश के तहत एक नाम वाले इतने सारे उम्मीदवारों को फॉर्म भरवाया गया है। जांच में यह बात भी सामने आई थी कि उम्मीदवारों द्वारा जमानत राशि के रूप में जमा किए नोटों की सीरिज आगे-पीछे की ही थी। भूपेश बघेल के इस प्रस्ताव पर भी बीजेपी सवाल उठा रही है कि यह चुनाव को प्रभावित करने की कोशिश है, लेकिन भूपेश बघेल जो बात कह रहे हैं, अगर उसका प्रावधान है, तो फिर बीजेपी के आरोपों में कितना दम है, इसका फैसला आयोग को करना है, लेकिन चंदूलाल साहू वाली गलती से सबक लेकर 380 से ज्यादा उम्मीदवार खड़े होते हैं, तो चुनाव काफी रोचक होगा।
पत्रकारों की मायूसी
छत्तीसगढ़ में बीजेपी राज में पत्रकार बिरादरी थोड़ी मायूस है, क्योंकि बीजेपी समर्थित पत्रकारों को उम्मीद थी कि सरकार बनते ही उनका भला होगा, लेकिन ऐसा कुछ हुआ नहीं। पिछली सरकार में तीन पत्रकारों को सलाहकार बनाया गया था, दो सूचना आयुक्त बनाए गए थे। विश्वविद्यालयों की कार्यपरिषद में पत्रकारों को सदस्य बनाया गया था, लिहाजा पत्रकारों को भारी उम्मीद थी। इस सरकार में अब तक दो सलाहकार बनाए गए हैं। दोनों गैर पत्रकार हैं। सूचना आयुक्त के पद पर भी प्रशासनिक अधिकारियों की नियुक्ति हो गई है। खांटी पत्रकारों को अभी तक कुछ मिला नहीं है, लिहाजा मायूसी स्वाभाविक है। दूसरी तरफ जनसंपर्क भी पत्रकारों को कुछ खास एंटरटेनमेंट नहीं कर रहा है। कुछेक का दर्द सोशल मीडिया पर कभी-कभार दिख भी जाता है। चर्चा है कि पत्रकारों को लोकसभा चुनाव तक धैर्य रखने की समझाइश दी गई है। खैर, देखते हैं कि इस सरकार में पत्रकारों का कितना भला होता है।
अर्दली और एट्रोसिटी !
राजधानी से सटे एक वीआईपी जिले के बटालियन के कमांडेंट को महिला अधिकारी के निवास में तिमारदारी के लिए तैनात दर्जन भर जवानों की फौज को हटाना भारी पड़ सकता है। दरअसल, पिछली सरकार में पावरफुल मंत्री के करीबी रहे इस अधिकारी दंपति को अभी भी ये गुमान है कि उनका कोई कुछ नही बिगाड़ सकता। बताते हैं कि मैडम का ट्रांसफर दो दिन के भीतर ही कैंसिल हो गया, इसी दम पर मैडम चुनाव ड्यूटी के लिए भी अपने घरेलू काम के लिए तैनात जवानों की फौज को छोड़ना नहीं चाहती। बताया जा रहा है कि इसके लिए उन्होंने बड़े साहब को एट्रोसिटी एक्ट में फंसाने तक की धमकी दे डाली। देखना यह होगा कि यहां चुनाव आयोग का डंडा चलता है यहां मैडम की धमकी।
तश्तरी में जीत
लकड़हारे की कहानी सभी ने सुनी ही है, जिसमें वह पेड़ की जिस डंगाल में बैठता है, उसी को काटता है। यह कहानी छत्तीसगढ़ की मौजूदा कांग्रेस पर पूरी तरह से फिट बैठती है। विधानसभा चुनाव के बाद नई सरकार में ट्रांसफर-पोस्टिंग को लेकर नए नवेले मंत्रियों और खांटी अफसरों की जुगलबंदी ने जो रायता फैलाया है, कांग्रेस उसका फायदा लोकसभा चुनाव में उठा सकती थी, लेकिन पार्टी के रणनीतिकारों ने पुराने घिसे-पीटे चेहरों पर दांव लगा दिया। उसमें से अधिकांश चेहरों पर जनता ने जमकर लानत बरसाई थी। चुनाव लड़ने के लिए दुर्ग के नेताओं के अलावा और कोई नजर नहीं आया। इस तरह से कांग्रेस ने जीत की संभावना वाली सीटों को भी बीजेपी के सामने तश्तरी में सजाकर पेश कर दिया है।
दारू और एक्स
किसी भी सरकार में आबकारी विभाग को दुधारू गाय माना जाता है। इसकी कमाई पर सभी की नजर होती है। छत्तीसगढ़ में आबकारी का काम संगठन के नेताओं के हाथ में आया है। पुराने और घाग दारू ठेकेदारों के पेट में दर्द शुरू हो गया है। बताते हैं कि एक बड़े दारू ठेकेदार ने कर्ता-धर्ताओं को बदनाम करने के लिए हाईटेक तरीका निकाला। ट्वीटर यानी एक्स पर फर्जी अकाउंट बनाकर भड़ास निकालना शुरू कर दिया। संगठन को इसकी भनक लगी, शिकायत हुई, तो पूरा मामला खुल गया। बताते हैं कि छत्तीसगढ़ पुलिस के सामने ठेकेदार के गुर्गों ने तोते की तरह राज खोल दिया है। दरअसल, घाग दारू ठेकेदार को अंदाजा नहीं था कि ईडी और सेंट्रल एजेंसी से लगातार जूझ रही छत्तीसगढ़ पुलिस भी स्मार्ट हो गई है। अब दारू ठेकेदार वापस पड़ोसी राज्य में शरण ढूंढ़ रहा है।
डिस्क्लेमर- सिर्फ सत्य और कुछ नहीं… यह हमारा ध्येय वाक्य है, लेकिन हमारे साप्ताहिक कॉलम “चौरा टॉक” में सत्य के साथ चर्चाओं का भी अंश है। ठीक वैसा ही जैसे किसी फैक्ट पर चौक-चौराहों में चर्चा होती है। उम्मीद है इसके कटेंट को आप उसी रूप में लेंगे।